उत्तर प्रदेश की राजनीति में इन दिनों बैठकों और मुलाकातों का दौर गर्म है। विधानमंडल के शीतकालीन सत्र के बीच राज्य की सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के ब्राह्मण विधायकों की एक बड़ी बैठक हुई, जिसने सियासी गलियारों में चर्चाएं तेज कर दी हैं। इस बैठक के मुख्य सूत्रधार कुशीनगर से विधायक पीएन पाठक रहे। हालांकि, इस 'सहभोज' को लेकर पाठक और अन्य विधायकों का कहना है कि इसके पीछे कोई राजनीतिक मंशा नहीं थी।
बैठक का एजेंडा: सियासत या सिर्फ संवाद?
एबीपी न्यूज़ से विशेष बातचीत में पीएन पाठक ने स्पष्ट किया कि इस बैठक को 2027 के विधानसभा चुनावों या किसी विशेष सियासी मकसद से जोड़कर देखना गलत है। उन्होंने उन दावों को भी सिरे से खारिज कर दिया कि यह बैठक हाल ही में हुई क्षत्रिय (ठाकुर) विधायकों की बैठक के जवाब में आयोजित की गई थी।
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बाटी-चोखा और फलाहार: पाठक के मुताबिक, यह महज एक अनौपचारिक मिलन था। उन्होंने कहा, "एक दिन पहले ही तय हुआ कि कहीं बैठकर बाटी-चोखा खाया जाए। चूंकि कई लोग व्रत भी थे, इसलिए उनके लिए फलाहार की व्यवस्था भी की गई थी।"
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चर्चा के विषय: विधायक का दावा है कि बैठक में केवल घर-परिवार, व्यक्तिगत कुशल-क्षेम और 'सोशल इम्पैक्ट' (SIR) जैसे सामाजिक विषयों पर बात हुई। किसी भी तरह की राजनीतिक खींचतान या नाराजगी की बात को उन्होंने पूरी तरह नकार दिया।
नाराजगी के सवाल पर मुख्यमंत्री का बचाव
जब पीएन पाठक से सवाल किया गया कि क्या अधिकारियों की कार्यशैली या सरकार से कोई नाराजगी इस बैठक का कारण है, तो उन्होंने बेहद सधे हुए अंदाज में जवाब दिया। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ हर स्तर पर उनकी मदद करते हैं और किसी भी विधायक या समाज के भीतर कोई असंतोष नहीं है।
रत्नाकर मिश्रा का 'समाज सुधार' वाला तर्क
बैठक में शामिल एक और प्रमुख चेहरा, मिर्जापुर से विधायक रत्नाकर मिश्रा ने इस आयोजन को थोड़ा अलग दृष्टिकोण से पेश किया। उन्होंने बताया कि इस बैठक में करीब चार दर्जन (48) विधायक मौजूद थे।
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सामाजिक सुधार: मिश्रा के अनुसार, ब्राह्मण समाज सदैव समाज को दिशा देने का काम करता रहा है। बैठक का उद्देश्य समाज में व्याप्त विसंगतियों को दूर करना और स्वयं में सुधार लाकर पूरे समाज को बेहतर बनाना था।
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नेतृत्व पर भरोसा: रत्नाकर मिश्रा ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की जमकर तारीफ की। उन्होंने कहा, "ऐसा मुख्यमंत्री न पहले कभी था और न भविष्य में होगा।" उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि किसी भी बिरादरी का अपने समाज के चिंतन के लिए बैठना एक सकारात्मक कदम है और इसके कोई नकारात्मक राजनीतिक मायने नहीं निकाले जाने चाहिए।
निष्कर्ष: क्या यह केवल 'सहभोज' है?
यूपी जैसे राज्य में, जहां जातिगत समीकरण सत्ता की दिशा तय करते हैं, वहां इतनी बड़ी संख्या में एक ही समाज के विधायकों का जुटना स्वाभाविक रूप से कई सवाल खड़े करता है। भले ही विधायक इसे 'बाटी-चोखा' का कार्यक्रम और 'चिंतन बैठक' बता रहे हों, लेकिन राजनीतिक विश्लेषक इसे सरकार के भीतर अपना प्रभाव और एकजुटता बनाए रखने के प्रयास के रूप में देख रहे हैं।
डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य और अन्य वरिष्ठ नेताओं की प्रतिक्रियाएं भी इस बात की ओर इशारा करती हैं कि पार्टी इन गतिविधियों पर करीब से नजर रख रही है। अब देखना यह होगा कि क्या यह 'बैठकी' वाकई केवल सामाजिक सुधार तक सीमित रहती है या भविष्य में किसी नए राजनीतिक समीकरण की नींव रखती है।