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वोट बैंक बढ़ेगा या खतरे में भविष्य? ईरान के साथ जंग-सीजफायर के बाद बेंजामिन नेतन्याहू का क्या होगा?

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Posted On:Thursday, June 26, 2025

ईरान के परमाणु प्रोग्राम को रोकने के लिए इजरायल ने 12 जून 2025 को एक सशक्त सैन्य अभियान छेड़ दिया, जो लगभग 12 दिन तक चला। इस जंग का मुख्य मकसद ईरान को परमाणु हथियार बनाने से रोकना था, जिसे इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने अपनी सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता बताया। उन्होंने स्पष्ट किया कि मुस्लिम देशों में सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी ईरान को किसी भी कीमत पर परमाणु हथियार हासिल करने की अनुमति नहीं दी जाएगी। इसी मकसद से इजरायल ने ईरान के 12 परमाणु ठिकानों में से लगभग 5 पर मिसाइल हमले किए, जिनमें अमेरिकी एयर स्ट्राइक ने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

इजरायल-ईरान जंग का विस्तार और परिणाम

इजरायल की मिसाइल हमलों और अमेरिका की बमबारी के चलते ईरान के परमाणु कार्यक्रम को भारी नुकसान पहुंचा है। ईरान ने आधिकारिक तौर पर स्वीकार किया है कि उसके प्रमुख परमाणु ठिकाने क्षतिग्रस्त हो गए हैं और इन्हें पुनः स्थापित करने में कई साल लगेंगे। इस हमले ने ईरान की परमाणु महत्वाकांक्षाओं को फिलहाल के लिए पीछे धकेल दिया है।

12 दिन की इस जंग के बाद अमेरिका ने मध्यस्थता करते हुए दोनों देशों के बीच सीजफायर करवा दिया। हालांकि, नुकसान केवल ईरान को ही नहीं हुआ, बल्कि इजरायल को भी भारी नुकसान उठाना पड़ा। कई सैन्य, सरकारी और नागरिक प्रतिष्ठान बर्बाद हुए, जिनकी मरम्मत में समय और भारी आर्थिक खर्च लगेगा।

नेतन्याहू की राजनीतिक स्थिति और भविष्य

इस सैन्य अभियान ने इजरायली प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की राजनीतिक छवि पर गहरा असर डाला है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने उन्हें योद्धा बताया है, जो देश की सुरक्षा के लिए कटिबद्ध हैं। वहीं, इजरायल के राजनीतिक गलियारों में उनके इस फैसले को लेकर विवाद भी तेज है।

नेतन्याहू के समर्थक मानते हैं कि उन्होंने साहसिक कदम उठाकर देश को परमाणु खतरे से बचाया है। उनका वोट बैंक मजबूत हुआ है और वे आगामी चुनावों में फिर से प्रधानमंत्री बनने के काबिल हो सकते हैं। उनकी यह छवि एक मजबूत नेता के रूप में उभरी है, जो देश की सुरक्षा को सर्वोपरि रखते हैं।

वहीं, विरोधी गुट इस हमले को असावधानिपूर्ण और खतरनाक निर्णय मानते हैं। उनका तर्क है कि नेतन्याहू ने ईरान की सैन्य ताकत और जवाबी कार्रवाई की गंभीरता को नजरअंदाज किया, जिससे इजरायल को व्यापक नुकसान उठाना पड़ा। विरोधी दल उन्हें इस जंग के लिए जिम्मेदार मानते हुए जांच की मांग कर रहे हैं।

नेतन्याहू पर संभावित जांच और राजनीतिक संकट

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि नेतन्याहू की ओर से ईरान के परमाणु हथियार बनाने के आरोप पर सैन्य कार्रवाई की गई है, जिसे लेकर गहन जांच हो सकती है। यदि यह साबित होता है कि उनकी कार्रवाई के पीछे पर्याप्त ठोस सबूत नहीं थे या उन्हें इस हमले के लिए जनता से परामर्श नहीं मिला, तो उनके खिलाफ आपराधिक या राजनीतिक जांच चल सकती है।

ऐसी स्थिति में नेतन्याहू को राजनीतिक रूप से अयोग्य घोषित किया जा सकता है और उन्हें सत्ता से हटाया जा सकता है। कुछ यहूदी समूहों और विपक्षी पार्टियों ने यह आरोप लगाया है कि नेतन्याहू ने अपनी राजनीतिक सुरक्षा के लिए देश को भारी नुकसान पहुंचाया है।

इजरायल की जनता में मतभेद

इजरायली जनता के बीच भी नेतन्याहू के इस कदम को लेकर मतभेद नजर आ रहे हैं। एक तरफ वे लोग हैं जो मानते हैं कि नेतन्याहू ने देश की सुरक्षा और भविष्य को ध्यान में रखकर सही निर्णय लिया। वहीं दूसरी तरफ ऐसे लोग भी हैं जो इस जंग की कीमत को बहुत ज्यादा मानते हैं और नेतन्याहू के फैसले से नाखुश हैं।

सैन्य नुकसान, आर्थिक बोझ और नागरिक जीवन पर पड़े प्रभाव के कारण कई नागरिक सरकार के इस फैसले से असंतुष्ट हैं। उन्होंने नेतन्याहू को देशहित के बजाय अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षा के चलते यह युद्ध छेड़ने का आरोप भी लगाया है।

आगे की चुनौतियां और संभावनाएं

अब सवाल यह है कि इस जंग के बाद इजरायल और ईरान के बीच भविष्य में संबंध कैसे रहेंगे? क्या यह सीजफायर स्थायी होगा या फिर आगे चलकर दोबारा टकराव संभव है?

विशेषज्ञ मानते हैं कि ईरान के परमाणु कार्यक्रम में आया यह बड़ा झटका अस्थायी है, लेकिन इसके बावजूद ईरान अब और ज्यादा सतर्क और मजबूत होकर वापस आएगा। परमाणु ठिकानों के पुनर्निर्माण में वर्षों लग सकते हैं, लेकिन ईरान की इस क्षेत्रीय महत्वाकांक्षा को पूरी तरह से खत्म नहीं किया जा सकता।

इजरायल को भी इस जंग से सबक लेना होगा और अपनी सुरक्षा नीतियों को और सशक्त करना होगा। साथ ही, अंतरराष्ट्रीय समुदाय को मध्यस्थता के जरिए क्षेत्र में स्थिरता लाने की कोशिशें तेज करनी होंगी।

निष्कर्ष

इजरायल का ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला एक निर्णायक और साहसिक कदम था, जिसने क्षेत्रीय सुरक्षा पर गहरा असर डाला है। नेतन्याहू ने इस फैसले से अपनी साख भी बढ़ाई और विपक्ष का सामना भी किया। उनका राजनीतिक भविष्य फिलहाल अनिश्चित है, क्योंकि जांच और विरोध जारी हैं।

इस जंग ने क्षेत्रीय राजनीति में नए समीकरण बनाए हैं और आने वाले समय में मध्यपूर्व की स्थिरता के लिए कई चुनौतियां प्रस्तुत की हैं। इजरायल और ईरान के बीच यह टकराव केवल सैन्य नहीं, बल्कि राजनीतिक, आर्थिक और कूटनीतिक स्तर पर भी लंबे समय तक छाया रहेगा।


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