बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार गिरने के बाद से ही अंतरराष्ट्रीय और घरेलू साजिशों के आरोप गूँज रहे थे। अब, मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार ने देश की राजनीतिक दिशा को पूरी तरह से बदलने की तैयारी कर ली है। चुनावी घोषणा से माना जा रहा है कि यह सरकार बनाने से ज्यादा तख्तापलट को सही साबित करने का प्लान है।
अंतरिम सरकार ने ऐलान किया है कि 12 फरवरी 2026 को बांग्लादेश में आम चुनाव भी होगा और उसी दिन संविधान बदलने वाले ‘जुलाई चार्टर’ पर देशव्यापी जनमतसंग्रह यानी रेफरेंडम भी कराया जाएगा। अब यह सवाल खड़ा हो रहा है कि आखिर यूनुस सरकार चुनाव और रेफरेंडम एक साथ क्यों कराना चाहती है? विशेषज्ञों का मानना है कि यह कदम न केवल मौजूदा सत्ता परिवर्तन को वैधता प्रदान करेगा, बल्कि भविष्य में किसी भी प्रधानमंत्री को 'अत्यधिक शक्तिशाली' बनने से रोकने के लिए किया जा रहा है।
क्या बांग्लादेश में संविधान बदलने की तैयारी?
5 अगस्त 2025 को शेख हसीना की सरकार को हटे एक साल पूरा होने पर ही मोहम्मद यूनुस ने संकेत दिया था कि चुनाव फरवरी 2026 में होंगे। अब तारीखों के साथ ही एक बड़ा राजनीतिक प्रयोग भी जोड़ दिया गया है।
जुलाई चार्टर, जिसे 25 से ज्यादा विपक्षी पार्टियों और नागरिक समाज समूहों ने साइन किया है, 1972 के बांग्लादेश संविधान में बड़े बदलाव करने की बात करता है। अगर जुलाई चार्टर लागू हुआ तो बड़े पैमाने पर बांग्लादेश में राजनीतिक शक्तियों का विकेंद्रीकरण और बंटवारा होगा।
बांग्लादेश के जुलाई चार्टर में प्रमुख प्रस्ताव
ढाका ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक, जुलाई चार्टर में कई बड़े संवैधानिक और राजनीतिक सुधार प्रस्तावित हैं:
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दो सदनों वाली संसद: संसद को दो सदनों वाला बनाया जाएगा। ऊपरी सदन में 100 सीटें होंगी और किसी भी संवैधानिक बदलावों पर अंतिम मंजूरी वही देगा।
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अत्यधिक शक्ति पर नियंत्रण: भविष्य में कोई भी प्रधानमंत्री 'अत्यधिक शक्तिशाली' न बन सके, इसके लिए चेक एंड बैलेंस की नई व्यवस्था लाई जाएगी।
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जुलाई चार्टर का कार्यान्वयन: जीतने वाले दलों को जुलाई चार्टर के 30 सर्वसम्मत बिंदुओं को लागू करना होगा।
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अन्य सुधार: महिलाओं के लिए बढ़ा हुआ प्रतिनिधित्व, विपक्ष का डिप्टी स्पीकर, प्रधानमंत्री के कार्यकाल पर सीमाएं, राष्ट्रपति की शक्तियों में वृद्धि, मौलिक अधिकारों का विस्तार और न्यायिक और स्थानीय सरकार की स्वतंत्रता को मजबूत करना शामिल है।
रेफरेंडम को लेकर क्या है विवाद?
यूनुस ने जब रेफरेंडम का ऐलान किया, तभी से विवाद बढ़ गया है। दरअसल जनता से चार अलग-अलग सुधारों पर राय ली जाएगी। पहले माना जा रहा था कि चारों सुधारों के लिए 'हाँ' और 'न' का अलग-अलग विकल्प होगा। लेकिन अब यह साफ है कि सवाल तो चार पूछे जाएंगे लेकिन विकल्प एक ही रहेगा। यानी, एक मतदाता को सभी चार सुधारों को एक साथ 'हाँ' कहना होगा या फिर सभी सुधारों को एक साथ नकारना होगा। यह 'एकल विकल्प' की रणनीति जनमत संग्रह की निष्पक्षता और सुधारों की व्यक्तिगत स्वीकृति पर सवाल उठा रही है।