मुंबई, 04 नवम्बर, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने मंगलवार को कोलकाता में स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) यानी वोटर लिस्ट वेरिफिकेशन के खिलाफ विरोध मार्च निकाला। करीब 3.8 किलोमीटर लंबी इस रैली में तृणमूल कांग्रेस महासचिव अभिषेक बनर्जी और बड़ी संख्या में पार्टी कार्यकर्ता शामिल हुए। ममता ने आरोप लगाया कि इस प्रक्रिया का इस्तेमाल 2026 विधानसभा चुनाव से पहले मतदाता सूची में गड़बड़ी करने के लिए किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि जैसे हर उर्दू बोलने वाला पाकिस्तानी नहीं होता, वैसे ही हर बंगाली भाषी को बांग्लादेशी नहीं कहा जा सकता।
इस रैली पर विपक्ष ने तीखी प्रतिक्रिया दी। विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष सुवेंदु अधिकारी ने ममता के मार्च को “जमात की रैली” बताया और कहा कि यह संविधान की नैतिकता के खिलाफ है। वहीं, बंगाल भाजपा अध्यक्ष समिक भट्टाचार्य ने सुझाव दिया कि अगर ममता बनर्जी को कोई आपत्ति है, तो उन्हें सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करनी चाहिए।
देश के 12 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में मंगलवार से SIR की प्रक्रिया शुरू हुई है। इनमें पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, पुडुचेरी और केरल जैसे राज्य शामिल हैं, जहां 2026 में विधानसभा चुनाव होने हैं। असम में भी अगले साल चुनाव हैं, लेकिन वहां SIR का शेड्यूल अभी तय नहीं हुआ है। आयोग का इस बार खास फोकस नागरिकता की जांच पर रहेगा। हालांकि असम में यह जांच फिलहाल स्थगित रहेगी, क्योंकि वहां नागरिकता से जुड़ी प्रक्रिया पहले से ही विवादों में है।
चुनाव आयोग के मुताबिक असम में मतदाता सूची की गहन समीक्षा तो होगी, लेकिन नागरिकता की पुष्टि पर कोई कार्रवाई नहीं की जाएगी। मुख्य निर्वाचन आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने कहा था कि असम में NRC की प्रक्रिया अभी पूरी नहीं हुई है, इसलिए राज्य के लिए अलग दिशा-निर्देश जारी किए जाएंगे।
असम में नागरिकता को लेकर सबसे ज्यादा उलझन 1971 से 1987 के बीच जन्मे लोगों को लेकर है। बाकी देश में 1 जुलाई 1987 से पहले जन्मे लोग स्वाभाविक रूप से भारतीय नागरिक माने जाते हैं, लेकिन 1985 के असम समझौते में तय हुआ था कि 1971 की जंग के दौरान आए बांग्लादेशी नागरिकों को वापस भेजा जाएगा। इसी वजह से उस अवधि में जन्मे लोगों की नागरिकता को लेकर भ्रम बना हुआ है।
1997 में तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त एम.एस. गिल ने ऐसे मतदाताओं को ‘डी वोटर’ यानी संदिग्ध श्रेणी में रखने का निर्णय लिया था। बाद में सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर 2005 में NRC की प्रक्रिया शुरू हुई, जो 2019 तक चली। इसमें करीब 19 लाख लोगों के नाम मतदाता सूची से हटाने की सिफारिश की गई, लेकिन राजनीतिक विवाद के कारण यह प्रक्रिया अधूरी रह गई। अब आयोग का इरादा है कि नागरिकता के मुद्दे पर अंतिम समाधान होने तक केवल मतदाता सूची की सामान्य समीक्षा की जाए।
असम में BLO घर-घर जाकर मतदाताओं की पुष्टि करेंगे कि कौन व्यक्ति उसी विधानसभा या संसदीय क्षेत्र का स्थायी निवासी है, कौन कहीं और चला गया है या अब जीवित नहीं है। 2004 में राज्य में मतदाताओं की संख्या 1.7 करोड़ थी जो अब बढ़कर 2.6 करोड़ हो चुकी है।
इधर तमिलनाडु में सत्तारूढ़ DMK ने भी राज्य में SIR प्रक्रिया को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है। मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन की अध्यक्षता में हुई बैठक में यह फैसला लिया गया। DMK नेता आर.एस. भारती ने पार्टी की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की, जिसमें इस प्रक्रिया को असंवैधानिक बताया गया। चुनाव आयोग ने बताया कि 4 नवंबर से बूथ लेवल अधिकारी यानी BLO घर-घर जाकर मतदाताओं का सत्यापन करेंगे। इन 12 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में कुल करीब 51 करोड़ वोटर हैं, जिनके सत्यापन का काम 5.33 लाख BLO और 7 लाख से ज्यादा BLA करेंगे। BLO वोटरों से उनके दस्तावेज जांचेंगे, गलत जानकारी सुधारी जाएगी और नए नाम जोड़े जाएंगे। यह पूरी प्रक्रिया 7 फरवरी तक चलेगी। आयोग ने स्पष्ट किया कि आपत्तियों पर विचार करने के बाद ही अंतिम मतदाता सूची प्रकाशित की जाएगी।