भारत ने पिछले कुछ दशकों में जिस रफ्तार से तकनीकी क्षेत्र में तरक्की की है, उसने देश को वैश्विक मंच पर एक नई पहचान दिलाई है। नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (एनएसई) के प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) आशीष कुमार चौहान ने हाल ही में एक पॉडकास्ट में इसी दिशा में अपनी बात रखते हुए कहा कि भारत अब दुनिया की आईटी राजधानी के रूप में उभर रहा है और इसकी विकास की कहानी तकनीक से प्रेरित है।
चौहान ने कैलाशनाथ अधिकारी के साथ बातचीत के दौरान बताया कि भारत में दो से तीन करोड़ आईटी नौकरियां हैं। तीन हजार से भी अधिक अंतरराष्ट्रीय आईटी कंपनियों ने भारत में अपने बेस स्थापित किए हैं, जो न केवल आर्थिक विकास को गति दे रहे हैं बल्कि भारत को वैश्विक स्तर पर एक प्रौद्योगिकी केंद्र के रूप में स्थापित कर रहे हैं।
तकनीक बना भारत का ईंधन
आशीष चौहान ने 1994 में एनएसई द्वारा उपग्रह के माध्यम से व्यापार को सक्षम करने वाली भारत की पहली डिजिटल सार्वजनिक प्रणाली की शुरुआत को याद करते हुए कहा कि यह वही दौर था जब भारत में आईटी क्रांति की नींव पड़ी। उन्होंने कहा, “आज तकनीक हमारा ईंधन है। यह न केवल व्यापार बल्कि शासन, शिक्षा, स्वास्थ्य और सामाजिक व्यवस्थाओं को भी बदल रही है।”
उनके अनुसार, भारत में आज टीसीएस जैसे संस्थानों में 7 लाख से अधिक और इंफोसिस में 5 लाख से ज्यादा कर्मचारी कार्यरत हैं। माइक्रोसॉफ्ट के लगभग 80% विंडोज पार्ट्स भारत में बनते हैं और गूगल व अन्य कंपनियां भी अपने एआई और क्लाउड से जुड़ा काम भारतीय इंजीनियरों से करवा रही हैं।
भारत में आईटी के साथ हार्डवेयर का भी भविष्य
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि भारत अब सॉफ्टवेयर ही नहीं बल्कि हार्डवेयर के क्षेत्र में भी आत्मनिर्भर बन रहा है। जब भारत में iPhone जैसे उत्पाद बनने लगेंगे, तो सर्वर और इलेक्ट्रॉनिक चिप्स भी यहीं पर तैयार किए जाएंगे। यह भारत को वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक हब बनाने की दिशा में एक मजबूत कदम है।
भारत की प्रौद्योगिकी क्षमता केवल सस्ती श्रमशक्ति तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें गुणवत्ता, नवाचार और तेजी से अनुकूलन की विशेषताएं भी शामिल हैं। चौहान ने इसे ‘पूंजी के बिना पूंजीवाद’ करार दिया, जहां तकनीक और प्रतिभा ही असली पूंजी है।
निवेशकों का बदलता परिदृश्य
एनएसई के एसएमई एक्सचेंज की भूमिका पर बोलते हुए चौहान ने बताया कि 1994 में भारत में केवल 10 लाख निवेशक थे, जबकि आज यह संख्या बढ़कर 11 करोड़ हो गई है। लद्दाख से लेकर अंडमान और अरुणाचल से लेकर द्वारका तक निवेशकों की भागीदारी बढ़ी है। 19,400 पिन कोड में से केवल 28 में ही अब तक निवेश नहीं हो पाया है, जो इस क्रांति का प्रमाण है।
उन्होंने यह भी बताया कि आज 25% निवेशक महिलाएं हैं और हर पांच में से एक घर एनएसई से जुड़ चुका है। यह भारत में वित्तीय समावेशन की एक बड़ी सफलता मानी जा रही है।
ट्रांसपेरेंसी और भरोसे ने बदला बाजार
आशीष चौहान ने बताया कि 1994 में शेयर बाजार की कुल पूंजी 4 लाख करोड़ रुपये थी, जो अब 440 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच चुकी है। इस बढ़ोत्तरी का मुख्य कारण है – पारदर्शिता। उन्होंने कहा कि हर दिन एनएसई को 2000 करोड़ रुपये से अधिक के ऑर्डर मिलते हैं, और 100 माइक्रोसेकंड में ऑर्डर की पुष्टि होती है। अगले ही दिन शेयर निवेशकों के खाते में दिखाई देते हैं। यही पारदर्शिता निवेशकों का विश्वास जीतने में कामयाब रही है।
निष्कर्ष
भारत आज जिस मुकाम पर पहुंचा है, उसमें तकनीक की केंद्रीय भूमिका है। आशीष चौहान के विचारों से स्पष्ट है कि आने वाले समय में भारत केवल तकनीकी उपभोक्ता नहीं बल्कि वैश्विक तकनीकी आपूर्तिकर्ता के रूप में उभरेगा। सरकार, निजी कंपनियाँ और स्टॉक मार्केट सभी इस डिजिटल विकास यात्रा के संवाहक बन चुके हैं।