मुंबई: भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने डिजिटल चैनल के माध्यम से बैंकिंग सेवाएं प्रदान करने के लिए व्यापक दिशानिर्देश जारी किए हैं। ये नए नियम 1 जनवरी 2026 से लागू होंगे और इनका उद्देश्य बढ़ती ग्राहक शिकायतों और बैंकों द्वारा जबरन सर्विस बंडलिंग की प्रवृत्ति को रोकना है। ये गाइडलाइंस बैंकों के अप्रूवल प्रोसेस को सख्त करेंगी, कम्प्लायंस और कस्टमर प्रोटेक्शन की जरूरतों को बढ़ाएंगी, और शिकायत निवारण के मानकों को मजबूत करेंगी।
नए नियमों की जरूरत क्यों पड़ी?
RBI ने ये नियम उन बढ़ती शिकायतों के जवाब में जारी किए हैं, जिनमें यह सामने आया था कि बैंक इंटरनेट बैंकिंग का लाभ उठाने या कार्ड एक्टिवेट करने के लिए ग्राहकों पर मोबाइल ऐप डाउनलोड करने का दबाव डाल रहे थे। यह नया फ्रेमवर्क ऐसे समय में आया है जब रेगुलेटर ग्राहक अनुभव पर केंद्रित है और बैंकों को सेवाओं को बंडल करने से रोकने के लिए सख्ती कर रहा है। डिजिटल बैंकिंग चैनल वे माध्यम हैं जिनके जरिए बैंक इंटरनेट बैंकिंग, मोबाइल बैंकिंग, और अन्य इलेक्ट्रॉनिक प्लेटफॉर्म पर ट्रांजैक्शन वाली (जैसे लोन, फंड ट्रांसफर) और सिर्फ देखने वाली (जैसे बैलेंस चेक) दोनों तरह की सेवाएं देते हैं।
कठिन होंगी अप्रूवल प्रक्रियाएं
RBI ने गाइडलाइंस को फिलहाल बैंकों की विभिन्न कैटेगरी तक ही सीमित रखा है। हालाँकि, यदि बैंक थर्ड पार्टी या फिनटेक कंपनियों को सेवाएँ आउटसोर्स करते हैं, तो उन्हें यह सुनिश्चित करना होगा कि वे मौजूदा RBI नियमों का पालन करें।
नए नियमों के अनुसार:
-
सिर्फ देखने वाली सर्विस: कोई भी बैंक जिसके पास कोर बैंकिंग सॉल्यूशन (CBS) और IPv6 ट्रैफिक को हैंडल करने में सक्षम पब्लिक IT इंफ्रास्ट्रक्चर है, वह 'सिर्फ देखने वाली' डिजिटल बैंकिंग सर्विस दे सकता है।
-
ट्रांजैक्शनल सर्विस: लेकिन ट्रांजैक्शनल डिजिटल बैंकिंग शुरू करने के लिए बैंकों को RBI से पूर्व मंजूरी लेनी होगी।
-
अन्य शर्तें: बैंकों को मजबूत वित्तीय और तकनीकी क्षमताओं, साइबर सिक्योरिटी कम्प्लायंस का मजबूत रिकॉर्ड, और मजबूत इंटरनल कंट्रोल जैसी कई अन्य शर्तें भी पूरी करनी होंगी।
ग्राहकों को मिलेगी बड़ी राहत
नए नियम सीधे तौर पर ग्राहकों को लाभ पहुंचाएंगे और उनकी सुरक्षा को मजबूत करेंगे:
-
जबरन बंडलिंग पर रोक: अब ग्राहकों को डेबिट कार्ड जैसी अन्य सेवाएं एक्सेस करने के लिए डिजिटल चैनल चुनने की जरूरत नहीं होगी। वे डिजिटल-बैंकिंग सर्विस का कोई भी कॉम्बिनेशन चुन सकते हैं, और बैंक उन्हें बंडल नहीं कर सकते।
-
स्पष्ट सहमति अनिवार्य: डिजिटल बैंकिंग सर्विस के रजिस्ट्रेशन या कैंसलेशन के लिए कस्टमर की साफ और डॉक्यूमेंटेड सहमति जरूरी है।
-
थर्ड-पार्टी ऑफर पर नियंत्रण: एक बार कस्टमर के लॉग इन करने के बाद, बैंक तब तक थर्ड-पार्टी प्रोडक्ट या सर्विस नहीं दिखा सकते जब तक कि कस्टमर ने खास तौर पर इजाजत न दी हो।
-
पारदर्शिता और अलर्ट: बैंकों को सभी फाइनेंशियल और नॉन-फाइनेंशियल ट्रांज़ैक्शन के लिए SMS या ईमेल अलर्ट भेजने होंगे।
रजिस्ट्रेशन के लिए, बैंकों को नियम और शर्तें साफ, आसान भाषा में बतानी होंगी, जिसमें फीस, हेल्प डेस्क की जानकारी और शिकायत सुलझाने के चैनल शामिल हैं। ये उपाय डिजिटल-बैंकिंग सर्विस के यूज़र्स के लिए सिक्योरिटी और क्लैरिटी बेहतर करेंगे।