भारत के शेयर बाजार के इतिहास में हर्षद मेहता का नाम हमेशा चर्चा में रहा है। एक साधारण पृष्ठभूमि से निकलकर दलाल स्ट्रीट का 'बिग बुल' बनने तक का उसका सफर भारतीय वित्तीय बाजार में नए सपने लेकर आया, लेकिन उसके पतन ने पूरे बैंकिंग और नियामक सिस्टम की कमजोरियों को उजागर कर दिया। यह कहानी है एक असाधारण उदय, अभूतपूर्व बुल रन और इतिहास में दर्ज हो चुके पतन की।
साधारण शुरुआत, असाधारण महत्वाकांक्षा
हर्षद मेहता का बचपन मुंबई के कांजुरमार्ग इलाके की एक छोटी सी कॉलोनी में गुजरा। पिता एक कार डीलर थे। आर्थिक रूप से घर मजबूत न होने के बावजूद, हर्षद के अंदर शुरू से ही कुछ बड़ा करने का जुनून था। पढ़ाई में वह औसत था, लेकिन उसकी गहरी रुचि संख्याओं, पैटर्न और वित्तीय सौदों को समझने में थी।
कॉलेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद, उसने कई छोटी-मोटी नौकरियां कीं जैसे बीमा एजेंट, सेल्समैन और बाद में एक ब्रोकरेज फर्म में क्लर्क। यहीं से उसकी किस्मत ने करवट लेना शुरू किया। हर्षद ने बाजार की चाल, कीमतों के उतार-चढ़ाव और निवेशकों के व्यवहार को बहुत तेजी से समझना शुरू कर दिया।
दलाल स्ट्रीट पर बिग बुल का उदय
1980 के दशक में हर्षद मेहता ने शेयर बाजार में एंट्री ली। शुरुआत में छोटे सौदे करने के बाद, जल्द ही उसकी समझ और रफ्तार ने ब्रोकरेज फर्मों का ध्यान खींचना शुरू कर दिया। जल्द ही उसने खुद की फर्म शुरू कर दी। उस दौर में भारत में शेयर बाजार उतना विकसित नहीं था—नियम कम थे और ट्रेडिंग सिस्टम जटिल था।
हर्षद ने इन्हीं खामियों को अपनी ताकत बनाया। वह कंपनियों के शेयरों में तेजी से ट्रेड करके 'बुल रन' चलाने में माहिर हो गया। उसकी एक कॉल पर स्टॉक्स चढ़ने लगते और बाजार में यह कहावत मशहूर हो गई- 'जहां बिग बुल हाथ रख दे, वहां सोना ही सोना।' अकड़ी ग्लास, एसीसी, वीडियोकॉन, टाटा आयरन जैसे कई स्टॉक्स उसके दांव से आसमान छूने लगे। निवेशक उसे भगवान की तरह देखने लगे और मीडिया ने उसे 'बिग बुल ऑफ बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज' कहा।
बैंकों के सिस्टम की खामी और स्कैम
1991–92 के बीच हर्षद ने सरकारी बैंकों के बीच होने वाले रेडी-फॉरवर्ड (RF) डील्स में एक बड़ा लूपहोल पकड़ा। यह सरकारी सिक्योरिटीज (G-Sec) का लेन-देन था। उस समय नियम इतने ढीले थे कि बैंकों के बीच फंड ट्रांसफर के लिए 'बैंक रसीद' (Bank Receipt - BR) का इस्तेमाल होता था। हर्षद ने इन्हीं RF डील्स का इस्तेमाल करके बैंकों से बिना किसी वास्तविक कागजी ट्रेल के हजारों करोड़ रुपये बाजार में झोंक दिए।
इन पैसों से उसने कई स्टॉक्स में अभूतपूर्व तेजी चलाई और शेयरों की कीमतें कई गुना तक पहुंचा दीं। उदाहरण के लिए, ACC का शेयर 200 रुपये से बढ़कर 10,000 रुपये तक पहुंच गया।
पतन: जब बुलबुला फूटा
लेकिन बुलबुला अधिक समय तक टिक नहीं सका। अप्रैल 1992 में पत्रकार सुचेता दलाल ने 'द टाइम्स ऑफ इंडिया' में एक एक्सक्लूसिव खुलासा किया कि स्टॉक मार्केट की इस चढ़त के पीछे सरकारी बैंकों का गायब पैसा है। यह 5,000 करोड़ रुपये का सबसे बड़ा स्कैम था। इस खुलासे ने भारतीय वित्तीय दुनिया को हिलाकर रख दिया, जिसके बाद हर्षद मेहता गिरफ्तार हुए और भारतीय स्टॉक मार्केट के नियमन में बड़े बदलाव हुए।