मंगलवार को भारतीय शेयर बाजार में एक बार फिर जोरदार गिरावट देखने को मिली। सेंसेक्स लगभग 800 अंकों तक लुढ़क गया और निफ्टी50 में भी 156 अंकों की गिरावट देखी गई। ये गिरावट केवल घरेलू कारकों का नतीजा नहीं, बल्कि वैश्विक स्तर पर कई कारणों से जुड़ी हुई थी। वित्तीय, IT और ब्याज दरों के प्रति संवेदनशील क्षेत्रों में कमजोरी, RBI की मौद्रिक नीति की अनिश्चितता, अमेरिका में आर्थिक जोखिम और वैश्विक व्यापार तनाव — इन सबने मिलकर बाजार को नीचे की ओर धकेल दिया।
सेंसेक्स और निफ्टी में गिरावट के आंकड़े
मंगलवार दोपहर 3 बजे के करीब बीएसई सेंसेक्स 584.28 अंक या 0.72% की गिरावट के साथ 80,789.47 पर पहुंच गया। वहीं, एनएसई का निफ्टी50 इंडेक्स 156.75 अंक या 0.63% की गिरावट के साथ 24,559.85 पर ट्रेड कर रहा था। इस गिरावट की वजह से बीएसई में लिस्टेड सभी कंपनियों का कुल मार्केट कैप 1.84 लाख करोड़ रुपये घट गया और यह 443.66 लाख करोड़ रुपये रह गया।
1. ब्याज दरों की अनिश्चितता और RBI की नीति
गिरावट के अहम कारणों में सबसे बड़ा कारक है भारतीय रिजर्व बैंक की आगामी नीतिगत घोषणा। निवेशकों को आशंका है कि ब्याज दरों में कोई बदलाव न होने की स्थिति में बाजार को सपोर्ट नहीं मिलेगा। दूसरी तरफ, यदि दरें बढ़ती हैं तो वह भी बाजार के लिए निगेटिव संकेत होगा। इसलिए बाजार में अस्थिरता है और निवेशक फिलहाल सतर्क होकर ट्रेडिंग कर रहे हैं।
2. अमेरिका में दर कटौती को लेकर अनिश्चितता
फेडरल रिजर्व के गवर्नर क्रिस्टोफर वालर ने कहा था कि इस साल दरों में कटौती हो सकती है, लेकिन ये आगामी आर्थिक आंकड़ों पर निर्भर करेगा। हालांकि सितंबर में कटौती की 75% संभावना जताई जा रही है, लेकिन कोई ठोस संकेत अभी तक नहीं मिला है। इस अनिश्चितता ने ग्लोबल मार्केट के साथ भारतीय बाजार को भी प्रभावित किया है।
3. कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव
ब्रेंट क्रूड की कीमतें अस्थिर बनी हुई हैं और यह लगभग 64.75 डॉलर प्रति बैरल पर ट्रेड कर रहा है। WTI भी 62.72 डॉलर पर रहा। सप्लाई में कमी और वैश्विक भू-राजनीतिक तनाव के कारण तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव बना हुआ है। इसका सीधा असर भारत जैसे आयात-निर्भर देशों पर पड़ता है और महंगाई की चिंता बढ़ती है, जिससे बाजार में डर का माहौल बनता है।
4. वैश्विक व्यापार तनाव
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने स्टील और एल्यूमिनियम पर आयात शुल्क 50% करने की घोषणा की है, जो 4 जून से लागू होगा। इस फैसले से निवेशकों की धारणा पर असर पड़ा है। टाटा स्टील, जेएसडब्ल्यू स्टील और हिंडाल्को जैसी कंपनियों के लिए यह चिंता का विषय बन गया है, क्योंकि इनका निर्यात अमेरिका और यूरोप पर निर्भर करता है।
5. कमजोर ग्लोबल आर्थिक आंकड़े
हाल ही में आए आंकड़ों के अनुसार, अमेरिका का विनिर्माण क्षेत्र लगातार तीसरे महीने कमजोर रहा है। वहीं, चीन में फैक्ट्री आउटपुट में भी 8 महीनों में पहली बार गिरावट आई है। इन आंकड़ों से वैश्विक मांग कमजोर होने की पुष्टि होती है, जो भारतीय कंपनियों के निर्यात और मुनाफे पर असर डाल सकती है। नैस्डैक और S&P 500 में भी गिरावट दर्ज की गई है, जो इसकी पुष्टि करते हैं।
6. अमेरिका का बढ़ता कर्ज और बॉन्ड यील्ड
अमेरिका की सीनेट में $3.8 ट्रिलियन के टैक्स और खर्च के बिल पर चर्चा हो रही है। इससे सरकारी उधारी बढ़ने की आशंका है, जिससे अमेरिकी बॉन्ड यील्ड 5% के करीब पहुंच चुकी है। जब बॉन्ड यील्ड बढ़ती है, तो निवेशक सुरक्षित निवेश को तरजीह देने लगते हैं, जिससे इक्विटी बाजार पर दबाव पड़ता है। भारतीय निवेशकों पर भी इसका असर देखने को मिला है।
निष्कर्ष: सतर्कता की ज़रूरत
भारतीय शेयर बाजार की यह गिरावट सिर्फ एक दिन की घटना नहीं, बल्कि आने वाले दिनों की अनिश्चितताओं की झलक है। RBI की अगली पॉलिसी बैठक, अमेरिकी दर नीति, तेल की कीमतें, वैश्विक व्यापार तनाव और विदेशी निवेशकों की धारणा — ये सभी अगले कुछ हफ्तों तक बाजार की दिशा तय करेंगे।
निवेशकों को फिलहाल सतर्क रहकर, मजबूत फंडामेंटल वाली कंपनियों में ही निवेश करना चाहिए। साथ ही, छोटे निवेशकों को शॉर्ट टर्म ट्रेडिंग से बचना चाहिए क्योंकि बाजार की अस्थिरता अभी थमी नहीं है। जैसे ही ग्लोबल संकेत बेहतर होंगे, बाजार में भी रिकवरी देखने को मिल सकती है।