विश्व व्यापार जगत में राहत की खबर आई है। अमेरिका और चीन के बीच लंबे समय से चल रहे टैरिफ युद्ध को फिलहाल 90 दिनों का विराम मिल गया है। यह अस्थायी समझौता दोनों देशों के नेताओं के बीच हाल ही में जिनेवा में हुई बातचीत का परिणाम है। इस ब्रेक ने न केवल अंतरराष्ट्रीय बाजारों को राहत दी है, बल्कि मंदी की आशंका से जूझ रहे वैश्विक निवेशकों को भी एक सकारात्मक संकेत दिया है।
क्या है टैरिफ वॉर और यह क्यों शुरू हुआ था?
टैरिफ वॉर का सीधा मतलब है एक देश द्वारा दूसरे देश के आयात पर भारी शुल्क लगाना ताकि उसके उत्पाद महंगे होकर प्रतिस्पर्धा में पीछे रहें। अमेरिका और चीन के बीच यह विवाद 2018 से चल रहा है। अमेरिका ने आरोप लगाया था कि चीन बौद्धिक संपदा की चोरी करता है, अमेरिकी उत्पादों को बाज़ार में समान अवसर नहीं देता और व्यापार घाटे को बढ़ावा दे रहा है। जवाब में चीन ने भी अमेरिका के खिलाफ आयात शुल्क बढ़ा दिए। इस खींचतान ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को प्रभावित किया और दोनों देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर दबाव बनाया।
नया अस्थायी समझौता: क्या बदला है?
हाल ही में हुए इस अस्थायी समझौते के तहत:
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अमेरिका ने चीनी उत्पादों पर टैरिफ को घटाकर 30% कर दिया है, जो पहले 145% था।
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चीन ने अमेरिकी उत्पादों पर टैरिफ को 125% से घटाकर 10% किया है।
यह समझौता 90 दिनों तक लागू रहेगा। इस दौरान दोनों देश विवादित मुद्दों पर बातचीत करेंगे। हालांकि मूल कारण — जैसे बौद्धिक संपदा, तकनीकी ट्रांसफर और ट्रेड बैलेंस — अभी भी अनसुलझे हैं, लेकिन यह पहल संकेत देती है कि दोनों देश संघर्ष को विराम देना चाहते हैं।
बाजार पर असर: तेजी की लहर
इस समझौते की खबर के बाद सोमवार को दुनियाभर के शेयर बाजारों में उछाल देखने को मिला। निवेशकों की भावनाओं में सकारात्मकता लौट आई।
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अमेरिका के डाउ जोंस और नैस्डैक इंडेक्स में 3% से अधिक की वृद्धि देखी गई।
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एशियाई बाजारों में भी तेजी रही, खासतौर पर जापान, चीन और भारत में निवेशकों ने सकारात्मक प्रतिक्रिया दी।
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सोने के दामों में गिरावट दर्ज की गई — यह संकेत है कि निवेशक अब जोखिम उठाने को तैयार हैं।
विशेषज्ञों के अनुसार, अगर यह समझौता स्थायी रूप लेता है तो वैश्विक मंदी का खतरा टल सकता है।
ट्रंप का बयान: ‘हम चीन को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहते’
समझौते के बाद अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक टीवी इंटरव्यू में कहा:
“जिनेवा में बातचीत बहुत सौहार्दपूर्ण रही। हम चीन को नुकसान नहीं पहुंचाना चाहते, वहां पहले से ही कारखाने बंद हो रहे थे। हमारा लक्ष्य सिर्फ व्यापार संतुलन बनाना है।”
उन्होंने आगे कहा कि वे राष्ट्रपति शी जिनपिंग से सप्ताहांत में फिर बात करेंगे और यह सुनिश्चित करेंगे कि आगे भी संवाद की प्रक्रिया बनी रहे।
चीन की प्रतिक्रिया: संबंधों को सुधारने की कोशिश
चीन ने भी इस समझौते का सकारात्मक स्वागत किया है। बीजिंग में अधिकारियों ने बताया कि वह अमेरिका के साथ ट्रेड और निवेश के द्वार खुले रखना चाहते हैं। टैरिफ वॉर से चीन की उद्योग-व्यवस्था और निर्यात दोनों प्रभावित हो रहे थे। साथ ही घरेलू उत्पादन में भी गिरावट आई थी।
चीन के अनुसार, “विन-विन” समाधान ही भविष्य है, और इसके लिए निरंतर वार्ता आवश्यक है।
टैरिफ वॉर का असर: 600 बिलियन डॉलर का व्यापार प्रभावित
टैरिफ युद्ध के चलते दोनों देशों के बीच का व्यापार बुरी तरह प्रभावित हुआ:
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करीब 600 बिलियन डॉलर का व्यापार ठप्प हो गया।
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टेक्नोलॉजी, कृषि, ऑटोमोबाइल और उपभोक्ता वस्तुओं की आपूर्ति श्रृंखला पर सीधा असर पड़ा।
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अमेरिका के किसानों और चीन के उद्योगपतियों दोनों को भारी नुकसान झेलना पड़ा।
इससे स्पष्ट है कि यह विवाद केवल दो देशों का मुद्दा नहीं, बल्कि वैश्विक आर्थिक स्थिरता से जुड़ा मामला है।
पहले भी हुआ था समझौता, लेकिन...
यह पहला मौका नहीं है जब अमेरिका और चीन ने टैरिफ वॉर को लेकर अस्थायी समाधान निकाला हो। 11 मई को भी एक समझौते की घोषणा की गई थी, लेकिन बाद में वह व्यावहारिक रूप नहीं ले सका। अब उम्मीद की जा रही है कि दोनों देश मूल मुद्दों पर ठोस निर्णय लें।
भारत और अन्य देशों के लिए क्या अवसर?
अमेरिका-चीन टैरिफ युद्ध से भारत, वियतनाम, बांग्लादेश जैसे देशों के लिए नया अवसर भी पैदा हुआ है। कई अमेरिकी और यूरोपीय कंपनियाँ अब चीन के विकल्प तलाश रही हैं। भारत के लिए यह मौका है कि वह मैन्युफैक्चरिंग और एक्सपोर्ट हब बन सके।
क्या 90 दिन काफी होंगे?
यही सबसे बड़ा सवाल है। क्या अमेरिका और चीन इन 90 दिनों में:
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बौद्धिक संपदा अधिकारों पर आम सहमति बनाएंगे?
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व्यापार घाटे को लेकर समाधान निकाल पाएंगे?
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बाजार में पारदर्शिता और निष्पक्षता ला पाएंगे?
इन सवालों के जवाब आने वाले समय में मिलेंगे। अगर समाधान नहीं निकला, तो यह संघर्ष और भयावह रूप ले सकता है।
निष्कर्ष: राहत तो मिली, लेकिन रास्ता लंबा है
अमेरिका और चीन के बीच टैरिफ वॉर पर 90 दिनों की रोक फिलहाल दुनिया के लिए राहत की सांस है। लेकिन यह फौरी समाधान है, स्थायी नहीं। यदि दोनों देश आपसी मतभेद सुलझाने में सफल होते हैं, तो वैश्विक व्यापार एक बार फिर स्थिरता की ओर लौट सकता है। लेकिन अगर वार्ता असफल रही, तो 90 दिन बाद फिर वही अस्थिरता, बाजार में घबराहट और मंदी की आशंका लौट सकती है।
दुनिया की निगाहें अब जिनेवा में नहीं, इन 90 दिनों के परिणाम पर टिकी हैं।