असम की हिमंता बिस्वा सरमा सरकार ने हाल ही में 18 साल से अधिक उम्र के लोगों के लिए आधार कार्ड जारी करने पर एक साल के लिए रोक लगा दी है, जिससे राज्य में बड़ा विवाद उत्पन्न हो गया है। इस निर्णय के खिलाफ ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (AIUDF) के नेता रफीकुल इस्लाम ने कड़ी आलोचना की है और इसे तुगलकी फरमान करार दिया है। रफीकुल इस्लाम का मानना है कि असम सरकार इस कदम से नागरिकों के मतदान के अधिकारों पर अंकुश लगाना चाहती है। वे इस बात पर भी सवाल उठा रहे हैं कि विदेशी नागरिकों के डर से भारतीयों को आधार कार्ड बनवाने के लिए मात्र 30 दिन का समय देना उचित है या नहीं।
आधार कार्ड रोक के खिलाफ AIUDF का विरोध
रफीकुल इस्लाम ने असम कैबिनेट के इस फैसले पर अपनी तीव्र प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि सरकार का यह फैसला लोकतांत्रिक अधिकारों के खिलाफ है। उनका आरोप है कि असम सरकार इस तरह के कड़े आदेश जारी करके लोगों को वोटिंग प्रक्रिया से रोकना चाहती है, जो कि लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है। उन्होंने कहा कि विदेशी नागरिकों को पकड़कर उनके खिलाफ कड़ा कदम उठाना जरूरी है, लेकिन इसके लिए भारतीय नागरिकों को अपने अधिकारों से वंचित करना उचित नहीं है।
विदेशी नागरिकों के लिए सख्त रुख
रफीकुल इस्लाम ने यह भी सुझाव दिया कि अगर कोई विदेशी व्यक्ति अवैध तरीके से भारत में रहता है और हिरासत में लिया जाता है, तो उसे तुरंत डिपोर्ट किया जाना चाहिए। ऐसे लोगों को आधार कार्ड जारी नहीं किया जाना चाहिए, उनका नाम मतदाता सूची में नहीं जोड़ा जाना चाहिए और उन्हें भारत की नागरिकता नहीं मिलनी चाहिए। लेकिन उनका यह भी कहना है कि इन सख्त कदमों के चलते भारतीय नागरिकों के अधिकारों को नुकसान पहुंचाना सही नहीं होगा।
विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) पर सवाल
रफीकुल इस्लाम ने असम में हो रहे विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision – SIR) की प्रक्रिया पर भी सवाल उठाए हैं। उनका आरोप है कि SIR का उपयोग बिहार की तरह असम में भी कुछ विशेष लोगों को टारगेट करने के लिए किया जा रहा है। वे कहते हैं कि मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा कुछ लोगों को निशाना बनाकर उन्हें आधार कार्ड बनवाने से रोकना चाहते हैं, जिससे वे SIR में हिस्सा न ले सकें और वोटर कार्ड भी न बनवा पाएं। इस तरह की रणनीति से लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं पर गंभीर खतरा उत्पन्न हो रहा है।
असम सरकार का रुख
असम सरकार ने विदेशी नागरिकों के खिलाफ कड़े कदम उठाने और नागरिकता तथा मतदाता सूची को साफ-सुथरा रखने के लिए यह कदम उठाया है। सरकार का दावा है कि इस निर्णय का मकसद केवल अवैध निवासियों को राज्य से बाहर करना और असम की जनसंख्या तथा वोटर सूची की सुरक्षा सुनिश्चित करना है। सरकार का कहना है कि इस प्रक्रिया से राज्य में सुरक्षा बढ़ेगी और अवैध प्रवासियों की संख्या कम होगी।
विवाद और आगामी चुनौतियां
इस मामले में असम सरकार और विपक्ष के बीच विवाद गहराता जा रहा है। AIUDF सहित कई विपक्षी पार्टियां इसे नागरिक अधिकारों का उल्लंघन और लोकतंत्र के खिलाफ बताते हुए सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की भी बात कर रहे हैं। वहीं, असम सरकार का कहना है कि यह कदम राज्य की सुरक्षा और सामाजिक स्थिरता के लिए जरूरी है। आगामी दिनों में इस मुद्दे पर राजनीतिक और कानूनी बहस तेज होने की संभावना है।
असम में आधार कार्ड पर लगी यह रोक न केवल नागरिक अधिकारों के सवाल को उजागर करती है, बल्कि राज्य में विदेशी नागरिकों के मुद्दे को लेकर चल रहे संघर्ष को भी गहराती है। यह देखना दिलचस्प होगा कि केंद्र सरकार, असम सरकार और विपक्ष इस विवाद को किस प्रकार सुलझाते हैं और क्या इस फैसले से असम के सामाजिक-राजनीतिक माहौल पर प्रभाव पड़ेगा।