मुंबई, 21 अगस्त, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। केंद्र सरकार ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि यदि राज्यपाल किसी विधेयक पर लंबे समय तक फैसला नहीं लेते, तो राज्यों को अदालत का दरवाजा खटखटाने की बजाय बातचीत के जरिए समाधान तलाशना चाहिए। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि हर समस्या का हल अदालतों से नहीं निकल सकता। लोकतंत्र में संवाद को हमेशा प्राथमिकता दी जानी चाहिए और भारत में दशकों से यही परंपरा रही है। मेहता ने उदाहरण देते हुए कहा कि कई मौकों पर मुख्यमंत्री राज्यपाल से सीधे मिलते हैं, प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति से संवाद करते हैं और समाधान निकाल लेते हैं। कई बार केवल फोन पर हुई बातचीत से भी रास्ता निकल आया है। उनका कहना था कि संविधान में राज्यपाल या राष्ट्रपति के लिए विधेयकों पर निर्णय लेने की कोई समय-सीमा निर्धारित नहीं की गई है। जहां भी समय-सीमा तय है, उसका स्पष्ट उल्लेख किया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि अदालत चाहे तो संसद से ऐसा कानून बनाने का सुझाव दे सकती है, जिसमें राज्यपाल के लिए समय-सीमा तय हो, लेकिन अदालत स्वयं ऐसा आदेश नहीं दे सकती।
वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को स्पष्ट किया कि चुनी हुई सरकारें राज्यपाल की इच्छा पर निर्भर नहीं हो सकतीं। अदालत ने कहा कि यदि कोई बिल विधानसभा से पास होकर राज्यपाल के पास जाता है और वे उसे पुनर्विचार के लिए लौटाते हैं, तो विधानसभा दोबारा उसे पास कर भेज सकती है। ऐसी स्थिति में राज्यपाल के पास मंजूरी देने के अलावा कोई विकल्प नहीं होता। अदालत ने यह भी कहा कि राज्यपाल अनिश्चितकाल तक बिल को रोके नहीं रख सकते, क्योंकि इससे निर्वाचित सरकारें राज्यपाल की मर्जी पर चलने को मजबूर हो जाएंगी।
यह पूरा मामला राष्ट्रपति और राज्यपाल की ओर से बिलों पर मंजूरी, रोक या राष्ट्रपति के पास भेजे जाने की प्रक्रिया को लेकर है। सीजेआई बीआर गवई की अध्यक्षता में पांच जजों की बेंच इस मामले की लगातार तीसरे दिन सुनवाई कर रही है। बेंच में जस्टिस सूर्यकांत, विक्रम नाथ, पी एस नरसिम्हा और ए एस चंदुरकर शामिल हैं।